All related suits of domestic violence in India

घरेलू हिंसा से संबंधित विभिन्न प्रकार के कानूनी मामलों और उपायों के बारे में निम्नलिखित जानकारी दी गई है:

1. महिला संरक्षण घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (PWDVA)

  • उद्देश्य: यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, यौन और आर्थिक उत्पीड़न शामिल है।
  • मुख्य प्रावधान:
    • साझा गृह में रहने का अधिकार: महिलाएं वैवाहिक घर या साझा गृह में रहने का अधिकार रखती हैं।
    • सुरक्षा आदेश: महिला आगे हिंसा से बचाव के लिए सुरक्षा आदेश प्राप्त कर सकती है।
    • वित्तीय सहायता: चिकित्सा खर्च, आय में कमी और मानसिक तनाव के लिए महिला आर्थिक सहायता की मांग कर सकती है।
    • संतान की कस्टडी: महिला यदि बच्चों की प्राथमिक देखभालकर्ता हैं, तो उन्हें बच्चों की कस्टडी मिल सकती है।
    • उल्लंघन पर दंड: यदि प्रतिद्वंद्वी सुरक्षा आदेश का उल्लंघन करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है।
  • मामला दर्ज करना: महिला इस अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने के लिए संरक्षण अधिकारी से या सीधे कोर्ट में जाकर मामला दर्ज कर सकती है।

2. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A

  • उद्देश्य: यह प्रावधान पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा विवाहित महिला के साथ क्रूरता, शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न, और धमकी से संबंधित अपराधों से निपटता है।
  • मुख्य प्रावधान:
    • यह एक आपराधिक अपराध है और इसमें गिरफ्तारी बिना वारंट के हो सकती है।
    • दंड के रूप में 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
  • मामला दर्ज करना: महिला या कोई तीसरा पक्ष पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकता है, जिसके बाद पुलिस जांच शुरू करती है और आरोपी की गिरफ्तारी हो सकती है।

3. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 (समलैंगिक घरेलू हिंसा के मामलों में लागू)

  • उद्देश्य: यह प्रावधान गैर-सहमति से यौन कृत्यों को नियंत्रित करता है, जिसमें घरेलू हिंसा के तहत अप्राकृतिक कृत्य शामिल हैं।
  • मुख्य प्रावधान:
    • यह असामान्य अपराधों को अपराधी ठहराता है, और इसका इस्तेमाल घरेलू हिंसा के मामलों में गैर-सहमति से यौन कृत्य करने वाले पार्टनर के खिलाफ किया जा सकता है।
  • मामला दर्ज करना: महिला पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकती है, जिसके बाद कार्रवाई शुरू होती है।

4. परिवार न्यायालय में मामला दर्ज

  • उद्देश्य: घरेलू हिंसा से संबंधित मामले परिवार न्यायालय में भी दर्ज किए जा सकते हैं, जो विवाह, तलाक, संतान की कस्टडी, और भरण-पोषण से जुड़े मामलों को सुलझाता है।
  • मुख्य प्रावधान:
    • महिला क्रूरता के आधार पर तलाक या पृथक्करण की मांग कर सकती है।
    • भरण-पोषण या गुजारा भत्ता के लिए परिवार न्यायालय में मामला दायर किया जा सकता है।
    • घरेलू हिंसा के मामले में बच्चों की कस्टडी भी परिवार न्यायालय द्वारा तय की जा सकती है।
  • मामला दर्ज करना: महिला सीधे परिवार न्यायालय में तलाक, भरण-पोषण या कस्टडी के लिए आवेदन कर सकती है।

5. नागरिक मामले: क्षतिपूर्ति के लिए नागरिक मुकदमा

  • उद्देश्य: घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला मानसिक तनाव, शारीरिक चोटों या संपत्ति की हानि के लिए नागरिक मुकदमा दायर कर सकती है।
  • मुख्य प्रावधान:
    • महिला मानसिक आघात, चिकित्सा खर्चों या संपत्ति की क्षति के लिए मुआवजा मांग सकती है।
  • मामला दर्ज करना: नागरिक अदालत में यह मुकदमा दायर किया जा सकता है।

6. भरण-पोषण और गुजारा भत्ता

  • उद्देश्य: घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाएं भरण-पोषण या गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं, निम्नलिखित प्रावधानों के तहत:
    • भारतीय दंड संहिता (CrPC) की धारा 125: इस धारा के तहत अगर पत्नी या बच्चे आत्मनिर्भर नहीं हैं, तो पति को भरण-पोषण देने का आदेश दिया जा सकता है।
    • तलाक के मामलों में भरण-पोषण: अगर तलाक हिंसा के कारण लिया गया है, तो महिला भरण-पोषण की मांग कर सकती है।

7. अस्थायी निषेधाज्ञा या रोकथाम आदेश

  • उद्देश्य: अदालत घरेलू हिंसा के मामले में अस्थायी निषेधाज्ञा जारी कर सकती है ताकि हिंसा और उत्पीड़न से बचाव किया जा सके।
  • मुख्य प्रावधान:
    • यह आदेश आरोपी को पीड़िता के पास जाने या संपर्क करने से रोक सकता है।

8. राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) में शिकायत

  • उद्देश्य: राष्ट्रीय महिला आयोग घरेलू हिंसा के मामलों में हस्तक्षेप करता है और कानूनी सहायता प्रदान करता है।
  • मुख्य प्रावधान:
    • आयोग महिलाओं को कानूनी कार्रवाई में सहायता प्रदान करता है और शिकायतों का समाधान करता है।

9. पुलिस में शिकायत दर्ज करना

  • उद्देश्य: घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकती है।
  • मुख्य प्रावधान:
    • पुलिस शिकायत के आधार पर जांच शुरू करती है और उचित कार्रवाई करती है।

उपलब्ध उपाय:

  1. सुरक्षा आदेश: आरोपी से महिला को बचाने के लिए सुरक्षा आदेश प्राप्त किया जा सकता है।
  2. आवास आदेश: पीड़िता को साझा गृह में रहने का अधिकार सुनिश्चित किया जा सकता है।
  3. वित्तीय सहायता: महिला को चिकित्सा, मानसिक तनाव, और जीवनयापन के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जा सकती है।
  4. संतान की कस्टडी: घरेलू हिंसा के मामलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए कस्टडी प्रदान की जा सकती है।

इन कानूनी उपायों के लिए किसी विशेषज्ञ वकील से परामर्श करना हमेशा उचित Hoga.

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